उत्तराखंड त्रासदी : कितनी मानवीय, कितनी प्राकृतिक?
उत्तराखंड में आयी भीषण बाढ़ और तबाही ने अनगिनत प्रश्न खड़े कर दिए हैं। विकास के अंधे दौड़ में पर्यावरण को अनदेखा करना, संवेदनशील इलाकों में बांधों का निर्माण, आपदा प्रबंधन की कोई तैयारी ना होना, प्रशासन का नदियों के किनारे में हुए अतिक्रमण को नज़रअंदाज़ करना इत्यादि कारणों ने क्षति को कई गुना बढ़ा दिया। अभी भी उत्तराखंड में स्थानीय लोग बुरे मौसम की मार के साथ-साथ प्रशासन की असंवेदनशीलता को भी झेलने पर विवश हैं। राज्य में कई स्वयंसेवी दल निःस्वार्थ भाव से काम कर रहे हैं। उन्ही में से एक दल 'बूँद' ने सोशल मिडिया के ज़रिये स्वयंसेवकों का एक बड़ा समूह तैयार किया और उत्तराखंड में दिन-रात एक कर के काम कर रहे हैं। दल के सदस्य अभिनव सब्यसाची ने न्यूज़क्लिक को उत्तराखंड की मौजूदा स्थिति से अवगत कराया और बूँद के बारे विस्तार से बताया।
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